Hanumaan Gadi

नागेश्वरनाथ मंदिर

फैजाबाद (अयोध्या ) पुण्य सलिला सरयू नदी के किनारे स्थापित प्राचीन नागेश्वरनाथ मंदिर इस बात का द्योतक भी है कि, जिस स्थान पर भगवान नागेश्वरनाथ का मंदिर है वही अयोध्या है। इस प्राचीन पौराणिक नगरी को राजा विक्रमादित्य ने बसाया था और इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार भी उन्हीं के द्वारा कराया गया था। धार्मिक मान्यताओं में आज भी बाबा नागेश्वरनाथ अयोध्या की पहचान के रुप में जाने जाते हैं और देश के कोने कोने से आने वाले भक्त श्रद्धालुओं के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर अयोध्या में स्थापित होने के कारण इसका महत्व और भी अधिक है और सावन मास में इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव का वंदन और पूजन करने से जन्म जन्मांतर के कष्ट मिट जाते हैं और मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए अगर आप भी सावन के इस पवित्र माह में भगवान शिव की आराधना कर पुण्य अर्जन करना चाहते हैं तो बिना देर किए पहुंच जाएं राम की नगरी अयोध्या और सरयू तट के किनारे स्थापित भगवान नागेश्वरनाथ का दर्शन और पूजन करें।

NAGESHWAR NATH TEMPLE NAGESHWAR NATH TEMPLE

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है नागेश्वरनाथ धार्मिक नगरी अयोध्या में सरयू तट के किनारे स्थित नागेश्वरनाथ मंदिर के बारे में प्राचीन ग्रंथों में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। इस मंदिर की स्थापना के विषय में माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने अनंत धाम जाने से पूर्व अयोध्या राज्य को आठ भागों में बांट दिया था। उन्होंने भरत के पुत्र पुष्कल तथा मणिभद्र, लक्ष्मण के पुत्र अंगद व सुबाहु और शत्रुघ्न के पुत्र नील तथा भद्रसेन और अपने पु्त्र लव तथा कुश को पूरा राज्य समान भागों में बांट दिया था।कुश को कौशाम्बी का राज्य मिला था। एक रात कुश को रात्रि में स्वप्न आया, जिसमें अयोध्या नगरी उनसे कह रही थी कि भगवान श्रीराम के अनंत धाम जाने के बाद मेरी स्थित पूर्व की भांति नहीं रह गई है। अयोध्या धाम की जिम्मेदारी हनुमान जी को सौंपी गई थी, लेकिन एक आज्ञाकारी भक्त होने के कारण वह अपने स्वामी की गद्दी पर बैठना अनुचित मानते हैं। इस कारण आप आकर अयोध्या पर शासन करें। इस स्वप्न के आधार पर कुश अयोध्या आकर इसे अपनी राजधानी बना कर रहने लगे।

महाराजा कुश ने की थी नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना शिव पुराण के अनुसार, एक बार नौका बिहार करते समय उनके हाथ का कंगन पवित्र सरयू में गिर गया, जो सरयू में वास करने वाले कुमुद नाग की पुत्री को मिल गया। यह कंगन वापस लेने के लिए राजा कुश तथा नाग कुमुद के मध्य घोर संग्राम हुआ। जब नाग को यह लगा कि वह यहां पराजित हो जायेगा तो उसने भगवान शिव का ध्यान किया। भगवान ने स्वयं प्रकट होकर इस युद्ध को रुकवाया। कुमुद ने कंगन देने के साथ भगवान शिव से अनुरोध किया कि उनकी पु्त्री कुमुदनी का विवाह कुश के साथ करा दें। इस प्रस्ताव को महाराज कुश ने स्वीकार किया और भगवान शिव से यह अनुरोध किया कि वे स्वयं सर्वदा यहीं वास करें। भगवान शिव ने उनकी इस याचना को स्वीकार कर लिया। नागों के ध्यान करने पर भगवान शिव प्रकट हुए थे, जिस कारण इसे नागेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद राजा कुश ने अयोध्या में नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थाापना की, जो आज भी पूरे देश में रहने वाले शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है।

अयोध्या की राम की पैड़ी खेत्र में स्थित प्राचीन नागेश्वरनाथ महादेव की महीमा अपरम्पार है। उनकी महिमा का बखान न केवल हिन्दू भक्तों ने बल्कि अंग्रेजों ने भी किया है। अंग्रेजी विद्वान विंसेटस्मिथ ने लिखा कि 27 आक्रमणों को झेल कर भी यह मंदिर अपनी अखंण्डता को बनाये रखे है। हैमिल्टान ने लिखा है कि पूरे विश्व में इसके समान दिव्य और पवित्र स्थान दूसरा कोई नहीं है। विद्वान मैक्सकमूलर ने लिखा है कि सैकड़ोें तूफानों को झेल कर भी यह मदिर अपनी अडिगता से अपने आप को स्थापित किए हुए है। कनिघंम ने उल्लेख किया है कि प्राणी को सच्ची शांति प्राप्ति का विश्व में एक मात्र स्थान यही है। इतिहासकार लोचन का कहना कि रामेश्वरम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ के समान ही अयोध्या के नागेश्वर नाथ का भी शिव आराधना में विशिष्ट स्थान है। इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म के तमाम प्राचीन ग्रंथों में भी अयोध्या के नागेश्वरनाथ मंदिर के महत्व का वर्णन लिखा है। इसी के चलते वर्ष भर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ जमा रहती है।



श्री राम जन्म भूमि अयोध्या

RAM MANIDR